वैदिक साहित्य की पुरातनता और स्तरीकरण
भारतीय साहित्य में वैदिक साहित्य सर्वाधिक प्राचीन साहित्य है। वैदिक कालीन सभ्यता की जानकारी के लिए वैदिक साहित्य महत्वपूर्ण स्रोत माना गया है। वैदिक साहित्य आर्यों की प्राचीनतम साहित्य है जिसमें चारों वेद उसके ब्राह्मण ग्रंथ आरण्यक और उपनिषद शामिल हैं उपनिषदों की वेदों का अंतिम भाग है इस कारण इसे वेदांत भी कहा जाता है। वेदों को अपौरुषेय कहां गया है । साथ ही इसे श्रुति ग्रंथ माना गया है जबकि अन्य को स्मृति ग्रंथ माना गया है।
वैदिक साहित्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान वेदों का है वैदिक शुद्ध और मंत्रों के संकलन को संहिता कहा जाता है सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है जबकि अन्य विधाओं में सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद शामिल हैं प्रथम तीन को वेदत्रई कहा गया है और इसमें अथर्ववेद शामिल नहीं हैं क्योंकि इसकी रचना सबसे बाद में होगी साथ ही इसकी प्रकृति अन्य देशों से अलग है संहिता की रचना अलग-अलग पुजारी वर्गों द्वारा किया गया था जैसे उत्तर पुजारी वर्ग द्वारा ब्रिक संहिता उद्गाता द्वारा शाम संहिता अथर्व द्वारा अंजू संहिता तथा ब्राह्मण पुजारी वर्ग द्वारा अथर्व संहिता की रचना की गई थी।
ऋग्वेद
वेदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऋग्वेद है ऋग्वेद में कुल 1028 मंत्र हैं अर्थार्थ इसमें 1017 मंत्र तथा इसके अलावा 11 बालखिल्य हैं। यह 10 मंडलों में विभक्त है ऋग्वेद का 2रा से 7वां मंडल की रचना सबसे पहले की गई है। 1ला और 10वां मंडल सबसे बाद रचे गए हैं। इसमें वे मंत्र भी रखे गए हैं जो अन्य मंडलों में नहीं रखी जा सके। इनकी रचना किसी एक काल में नहीं हुई बल्कि बाद के काल के ऋषियों द्वारा भी की गई हैं जो भाषाई अंतर से स्पष्ट होता है। इस ग्रंथ में विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाए गए मंत्रों का संकलन है।
सामवेद
सामवेद दूसरा प्रमुख वेद है सामवेद श्रवण से बना है जिसका अर्थ है गान इस तरह शाम वेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति में यज्ञ के समय गाया जाता था सामवेद में कुल 1810 श्लोक हैं इनमें 75 को छोड़कर सभी रिग वेद से लिए गए हैं इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है इस के छंद का उच्चारण उदगात्र पुरोहित करते थे।
इसकी 3 पाठ है
कैथूम संहिता
राणायनिय संहिता
जैमिनीय संहिता
यजुर्वेद
यजुर्वेद तीसरा वेद है जो यजुष से बना है जिसका अर्थ है यज्ञ । इस वेद में यज्ञ को संपन्न करने वाले मंत्रों का संग्रह है।
यजुर्वेद के दो भाग हैं
कृष्ण यजुर्वेद
शुक्ल यजुर्वेद
कृष्ण यजुर्वेद प्राचीन है इसमें सूक्तम के अतिरिक्त गद्य की टिप्पणी भी है कृष्ण यजुर्वेद के चार पाठ हैं
मैत्रायणी संहिता
काठक संहिता
कपिष्ठल कठ संहिता
तैत्तिरीय संहिता
शुक्ल यजुर्वेद में सिर्फ शुक्ति है। शुक्ल यजुर्वेद अथवा वाजसनेई संहिता के दो पाठ उपलब्ध हैं
मध्यानिंदिन
कण्व
अथर्ववेद
अथर्ववेद अंतिम वेद है। इसके प्रथम रचनाकार ऋषि अथर्वा तथा दूसरे रचनाकार अंगिरस ऋषि थे। अथर्ववेद अन्य वेदों के विपरीत लौकिक विषयों से संबंधित है। इस वेद में कुल 20 मंडल और 731 मंत्र है। इस वेद की विषय-वस्तु -रोग निवारक ,तंत्र मंत्र, जादू -टोना, श्राप, वंशीकरण, प्रेम विश्वास ,अंधविश्वास आदि है इस वेद को सभी वेदों का सार कहा गया है।
इस वेद में तत्कालीन भारतीय औषधि विज्ञान संबंधी जानकारी भी प्राप्त होती है। इसमें अंग हुआ मगध जैसे पूर्वी क्षेत्रों का उल्लेख होने के आधार पर स्पष्ट है कि इसकी रचना काल तक आर्य इन क्षेत्रों से परिचित हो गए थे।इसी कारण इसे अंतिम वैध माना गया है।
ब्राह्मण ग्रंथ
संहिताओं के युग के बाद ब्राह्मणों का युग आता है ब्राह्मण ग्रंथ का मुख्य लक्ष्य पवित्र ग्रंथों तथा धर्मानुष्ठान की व्याख्या करना है इसके अधिकांश रचना गद्य में है किंतु यदा-कदा छंदोबद्ध गाथा भी प्राप्त होती है।सभी वेदों के अपने अपने ब्राह्मण ग्रंथ हैं। जैसे--
वेद
ब्राह्मण ग्रंथ
ऋग्वेद
ऐतरेय ब्राह्मण ,कौषीतकि ब्राह्मण
सामवेद
पंचविश, षडिवश, ,जैमिनीय, छनदोयोग्य
यजुर्वेद
तैत्तिरीय ब्राह्मण ,शतपथ ब्राह्मण
अथर्ववेद
गोपथ ब्राह्मण
आरण्यक ग्रंथ
इसका संबंध ब्रम्हविद्या, रहस्यवाद तथा यज्ञ की प्रतीकात्मकता से है। यह तप पर बल देता है वास्तव में ब्राह्मणक कर्मकांडों की जटिलता के कारण इसका विकास हुआ। इन ग्रंथों में याज्ञिक अनुष्ठानों अथवा कर्मकांडों का विरोध किया गया है तथा नैतिक और मानवीय मूल्यों पर जोर दिया गया है। मोटे तौर पर यह ब्राह्मण और उपनिषद के बीच के संक्रमण को दर्शाता है ।वस्तुतः ब्राह्मणों के ही कुछ भाग को आरण्यक माना जाता है इन दार्शनिक रचनाओं से ही बाद में उपनिषद का विकास हुआ। ब्राह्मण ग्रंथों की तरह आरण्यक भी वेदों से संबंधित हैं अथर्ववेद को छोड़कर सभी वेद के आरण्यक हैं।
उपनिषद
उपनिषद का अर्थ है गुरु के
भारतीय साहित्य में वैदिक साहित्य सर्वाधिक प्राचीन साहित्य है। वैदिक कालीन सभ्यता की जानकारी के लिए वैदिक साहित्य महत्वपूर्ण स्रोत माना गया है। वैदिक साहित्य आर्यों की प्राचीनतम साहित्य है जिसमें चारों वेद उसके ब्राह्मण ग्रंथ आरण्यक और उपनिषद शामिल हैं उपनिषदों की वेदों का अंतिम भाग है इस कारण इसे वेदांत भी कहा जाता है। वेदों को अपौरुषेय कहां गया है । साथ ही इसे श्रुति ग्रंथ माना गया है जबकि अन्य को स्मृति ग्रंथ माना गया है।
वैदिक साहित्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान वेदों का है वैदिक शुद्ध और मंत्रों के संकलन को संहिता कहा जाता है सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद है जबकि अन्य विधाओं में सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद शामिल हैं प्रथम तीन को वेदत्रई कहा गया है और इसमें अथर्ववेद शामिल नहीं हैं क्योंकि इसकी रचना सबसे बाद में होगी साथ ही इसकी प्रकृति अन्य देशों से अलग है संहिता की रचना अलग-अलग पुजारी वर्गों द्वारा किया गया था जैसे उत्तर पुजारी वर्ग द्वारा ब्रिक संहिता उद्गाता द्वारा शाम संहिता अथर्व द्वारा अंजू संहिता तथा ब्राह्मण पुजारी वर्ग द्वारा अथर्व संहिता की रचना की गई थी।
ऋग्वेद
वेदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऋग्वेद है ऋग्वेद में कुल 1028 मंत्र हैं अर्थार्थ इसमें 1017 मंत्र तथा इसके अलावा 11 बालखिल्य हैं। यह 10 मंडलों में विभक्त है ऋग्वेद का 2रा से 7वां मंडल की रचना सबसे पहले की गई है। 1ला और 10वां मंडल सबसे बाद रचे गए हैं। इसमें वे मंत्र भी रखे गए हैं जो अन्य मंडलों में नहीं रखी जा सके। इनकी रचना किसी एक काल में नहीं हुई बल्कि बाद के काल के ऋषियों द्वारा भी की गई हैं जो भाषाई अंतर से स्पष्ट होता है। इस ग्रंथ में विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाए गए मंत्रों का संकलन है।
सामवेद
सामवेद दूसरा प्रमुख वेद है सामवेद श्रवण से बना है जिसका अर्थ है गान इस तरह शाम वेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति में यज्ञ के समय गाया जाता था सामवेद में कुल 1810 श्लोक हैं इनमें 75 को छोड़कर सभी रिग वेद से लिए गए हैं इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है इस के छंद का उच्चारण उदगात्र पुरोहित करते थे।
इसकी 3 पाठ है
कैथूम संहिता
राणायनिय संहिता
जैमिनीय संहिता
यजुर्वेद
यजुर्वेद तीसरा वेद है जो यजुष से बना है जिसका अर्थ है यज्ञ । इस वेद में यज्ञ को संपन्न करने वाले मंत्रों का संग्रह है।
यजुर्वेद के दो भाग हैं
कृष्ण यजुर्वेद
शुक्ल यजुर्वेद
कृष्ण यजुर्वेद प्राचीन है इसमें सूक्तम के अतिरिक्त गद्य की टिप्पणी भी है कृष्ण यजुर्वेद के चार पाठ हैं
मैत्रायणी संहिता
काठक संहिता
कपिष्ठल कठ संहिता
तैत्तिरीय संहिता
शुक्ल यजुर्वेद में सिर्फ शुक्ति है। शुक्ल यजुर्वेद अथवा वाजसनेई संहिता के दो पाठ उपलब्ध हैं
मध्यानिंदिन
कण्व
अथर्ववेद
अथर्ववेद अंतिम वेद है। इसके प्रथम रचनाकार ऋषि अथर्वा तथा दूसरे रचनाकार अंगिरस ऋषि थे। अथर्ववेद अन्य वेदों के विपरीत लौकिक विषयों से संबंधित है। इस वेद में कुल 20 मंडल और 731 मंत्र है। इस वेद की विषय-वस्तु -रोग निवारक ,तंत्र मंत्र, जादू -टोना, श्राप, वंशीकरण, प्रेम विश्वास ,अंधविश्वास आदि है इस वेद को सभी वेदों का सार कहा गया है।
इस वेद में तत्कालीन भारतीय औषधि विज्ञान संबंधी जानकारी भी प्राप्त होती है। इसमें अंग हुआ मगध जैसे पूर्वी क्षेत्रों का उल्लेख होने के आधार पर स्पष्ट है कि इसकी रचना काल तक आर्य इन क्षेत्रों से परिचित हो गए थे।इसी कारण इसे अंतिम वैध माना गया है।
ब्राह्मण ग्रंथ
संहिताओं के युग के बाद ब्राह्मणों का युग आता है ब्राह्मण ग्रंथ का मुख्य लक्ष्य पवित्र ग्रंथों तथा धर्मानुष्ठान की व्याख्या करना है इसके अधिकांश रचना गद्य में है किंतु यदा-कदा छंदोबद्ध गाथा भी प्राप्त होती है।सभी वेदों के अपने अपने ब्राह्मण ग्रंथ हैं। जैसे--
वेद
ब्राह्मण ग्रंथ
ऋग्वेद
ऐतरेय ब्राह्मण ,कौषीतकि ब्राह्मण
सामवेद
पंचविश, षडिवश, ,जैमिनीय, छनदोयोग्य
यजुर्वेद
तैत्तिरीय ब्राह्मण ,शतपथ ब्राह्मण
अथर्ववेद
गोपथ ब्राह्मण
आरण्यक ग्रंथ
इसका संबंध ब्रम्हविद्या, रहस्यवाद तथा यज्ञ की प्रतीकात्मकता से है। यह तप पर बल देता है वास्तव में ब्राह्मणक कर्मकांडों की जटिलता के कारण इसका विकास हुआ। इन ग्रंथों में याज्ञिक अनुष्ठानों अथवा कर्मकांडों का विरोध किया गया है तथा नैतिक और मानवीय मूल्यों पर जोर दिया गया है। मोटे तौर पर यह ब्राह्मण और उपनिषद के बीच के संक्रमण को दर्शाता है ।वस्तुतः ब्राह्मणों के ही कुछ भाग को आरण्यक माना जाता है इन दार्शनिक रचनाओं से ही बाद में उपनिषद का विकास हुआ। ब्राह्मण ग्रंथों की तरह आरण्यक भी वेदों से संबंधित हैं अथर्ववेद को छोड़कर सभी वेद के आरण्यक हैं।
उपनिषद
उपनिषद का अर्थ है गुरु के
आपने बहुत अच्छा उत्तर लिखने का प्रयास किया है,
ReplyDeleteधन्यवाद